Sunday, April 27, 2014

रमन्ते यत्र देवता ....

रायगढ खरसिया मुख्य मार्ग पर पर कुनकुनी बसा है। यह एक बड़ी बस्ती है, जिसमे कई मुहल्ले हैं। पहाड़ी की ओर बसे मोहल्ले मे जाने के लिए पतली और टेढ़ी मेढ़ी गलियों से होकर गुजरना होता है। इन गलियों की चौड़ाई बस इतनी है कि एक बैलगाड़ी ही निकल सकती है। गांव मे घर आंगन और सड़क पर मे जगह जगह महुआ डोरी सुखाया दिखता है। यहीं तालाब के पास उमा का घर है।

नवदुर्गा समूह की सदस्य उमा का घर उसकी पहली कोठरी मे खुली दुकान की वजह से पहचान सकते है। घर मे दो बच्चे और सास ससुर है। बच्चे गांव के ही स्कूल मे पढ़ते है। कोठरीनुमा दुकान मे एक फ्रिज रखा है, मनिहारी सामान के साथ ही धान की कुछ बोरियां रखी है। यही बातचीत शुरू होती है। 


नवदुर्गा समूह वैसे तो पांच छह साल पुराना था मगर सदस्यों मे सामंजस्य न होने के कारण टूट गया था। जनमित्रम के स्थानीय कार्यकर्ता नंदकि’ाोर ने इन्हे पुनः जोड़ा। साल भर से समूह फिर सक्रिय हुआ है। समूह मे सीतल (अध्यक्ष), कौ’ाल्या (सचिव) एवं उमा, अनुसुइया, बुन्द्राबाइ्र एवं चन्द्रोबाई सदस्य है। समूह के सदस्य मिलकर 1200 रू प्रतिमाह बचत जमा करता है। गांव की जलग्रहण समिति के सहयोग से इन्हें सत्तर हजार रूपये का ऋण मिला है। 

उमा ने पच्चीस हजार लिए है जो दुकान मे सामान, चावल की आढ़त व फ्रिज खरीदने मे लगाया गया है। कुछ रकम घर की बाड़ी मे शाकभाजी लगाने पर व्यय किया है। उमा की बाड़ी मे मक्का, केला, और सागभाजी की फसल लगी है। इस ऋण ने इनकी आय मे माह मे तीन-चार हजार का इजाफा किया है। 



समूह की अध्यक्ष सीतल को धान उत्पादन के लिए पच्चीस हजार की मदद मिली है। पहाड़ी के नीचे अपनी लंबी चैड़ी जमीन के एक टुकड़े पर ही फसल लेने को मजबूर सीतल ने इस बार पूरे छह एकड़ मे खेती की है। धान मे बालियां आ गई हैं। सब खर्च काटकर साठ से सत्तर हजार रू की शुद्ध कमाई का अनुमान है। समूह की सदस्य कौशल्या के परिवार का मनिहारी का काम है, जो आसपास के बाजारो मे घूमकर किया जाता है। उसने बीस हजार का का ऋण लेकर अपने व्यवसाय मे लगाया है। 




उमा के घर से कुछ दूर फूलबाई सागर का घर है। फूलबाई सांई स्व सहायता समूह की सचिव है। समूह अध्यक्ष ईश्वरी के साथ गायत्री , फोरकुंवर,गंगाबाई , सौकमती, कमलेश्वरी और सरोज इसके सदस्य है। इस समूह ने मिलकर बकरीपालन शुरू किया है। कुल पचास हजार के निवेश से बकरियां खरीदी गई हैं। इनमे से कई बच्चे देने वाली है। सात आठ माह बाद इनकी बीस बाइस बकरियां पांच हजार के न्यूनतम मूल्य पर बिक जाएँगी ।




नंद किशोर इन महिलाओं की प्रगति और अनुशासन से बड़े प्रभावित है। शुरूआत मे उन्हें महिलाओं को जोड़ने मे सर्वाधिक कठिनाई इसी गांव मे आई। मगर साई ओर नवदुर्गा की उमाओ और गायत्रिओ ने नई धारा प्रवाहित कर दी है। इनसे अन्य परिवार भी जुड़ने के लिए उत्साहित हुए है। कई घरों मे पुरूषों के द्वारा महिलाओं को समूहों मे जुड़ने का उपहास करना बंद कर, प्रोत्साहन दिया जाने लगा है। कमाई का वैकल्पिक स्रोत बनने से महिलाओं का दर्जा भी बढ़ा है। 



महिलाओं की सम्मान बढ़ा है तो यकीनन यहां तरक्की के देवता भी विराजेंगे।
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता”

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