Sunday, April 27, 2014

राठिया एण्ड संस की उद्यमी अधीरता

बड़े डूमरपाली की मुख्य बस्ती से दो किमी दूर, मुख्य मार्ग से हटकर कच्चा रास्ता है। इस रास्ते पर लगभग पांच सौ मीटर बढिए। अप्रेल की गरमी मे जहां चारो ओर सूखी जमीने हों, मगर भूमि का एक टुकड़ा रेगिस्तान मे नखलिस्तान की तरह दिखाई दे। जहां मूंगफली, मिर्च, टमाटर, आलू की खेती के बीच सिर उठाए सूरजमुखी के फूल आखों को सुहावनी छटा दें , तो समझिए कि बाबूलाल राठिया का खेत यही है।


खेत के बीचोबीच एक झोपड़ी है, जिसमे बाबूलाल स्वयं अथवा उसके परिवार के सदस्य चैबीसो घण्टे पहरा देते हैं। यह क्षेत्र बन्दरों और मवेशियों के प्रकोप के कारण धान के अलावे अन्य किसी फसल के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता था। मगर राठिया एण्ड संस के आगे मवेशी और बंदरो की क्या बिसात। फिर अगर कुछ कसर थी तो जलग्रहण विकास कार्यक्रम ने पूरी कर दी।


एक नजर मे हरा भरा यह टुकड़ा 6 एकड़ से अधिक का दिखाई देता है। तीन साल पहले ऐसा नहीं था। बाबूलाल यहां लगभग 3 एकड़ भूमि मे धान की खेती करते थे। इस जगह से बमुश्किल पचास साठ हजार की आय होती थी। जलग्रहण कार्यक्रम से जुड़ने पर लगभग डेढ़ एकड़ भूमि को समतल कर कृषि योग्य बनाया गया, साथ ही मेड़बंदी भी कराई गई। जब मजदूर लगे थे तब साथ ही साथ खुद पूरे परिवार ने जुटकर अतिरिक्त भूमि को भी उपयोगी बना लिया। अभी लगी हुई सारी फसल से लगभग 2 लाख रूपये की कमाई का अनुमान है। 


"हमर बाबू के 19 एकड़ जमीन रहिस, सब ला पिए पाए मे गंवा दारिस"; 


बाबूलाल बताते हैं कि आधी से कुछ कम जमीन, पिता डेरिहा राठिया की शराब की आदत की भेट चढ़ गई। बिकने वाली जमीने खेती योग्य थी, बेकार टुकड़े बचे थे। अपने पुत्रो, सुशील और सुरीत के साथ मिलकर, अपनी जमीन को संवारा है। उधार पर बोर करवाया जो इस फसल के बाद चुका दिया जाएगा। बिजली का कनेक्शन टेम्प्रेरी है जिसे भी परमानेंट कराना है। 


अभी भी भूमि का एक टुकड़ा बेकार है। बाबूलाल ने इसे ईंट भट्ठे के लिए किराए पर दे दिया है। जमीन भी बढे+गी और कुछ पैसा भी आ जाएगा। परिवार मे यामदती, जो पुत्रवधू है, भी बड़ी मेहनती है। गांंव की बूढ़ी मां समूह की सचिव है। यह समूह भी ग्राम जलग्रहण समिति के चक्रधर डनसेना द्वारा प्रेरित है जिसमे 11 सदस्य है। यादमती अपने समूह की मदद से ऋण लेकर, घर के पास की बाड़ी मे सागभाजी उगाया है। छोटा पुत्र सुरीत टैªक्टर ड्राइवरी करता है और खेती मे भी हाथ बटाता है। पत्नी सुमित्रा खेती और रखवाली मे हाथ बटाती है। 


पिछले कुछ सालों से घर मे समृद्धि आई है आगे का भविष्य सुखद आशाओं से भरा है। मगर इसे जल्द हासिल करने की अधीरता भी है। बाबूलाल मुझे ट्विस्ट दिया - " ये आषाढ़ मे मोला 60 हजार के लोन दिलावा।" और मिनटो मे उस लोन की आव’यकता, खर्च, मुनाफे और किश्त पटाने की समय योजना सुना दी। हमारी समस्या थी कि सामान्यतः जलग्रहण के तहत 25000 से अधिक के ऋण नहीं दिए जा सकते, और न ही एक लाभार्थी को बारंबार फायदा दिया जा सकता है। फिर भी आश्वाशन देकर रवानगी ली। 



देश के खरबपति उद्यमी मुकेश अंबानी ने एक स्पीच मे कहा था कि उद्यमशील व्यक्ति, अपने भीतर और आसपास, एक उद्यमी अधीरता का वातावरण बनाकर रखते है। ये अधीरता न सिर्फ लक्ष्यों को पाने मे मदद करती है बल्कि उसकी प्राप्ति का समय घटा देती है। बाबूलाल राठिया मे भी वही उद्यमी अधीरता नजर आती है। 


फिर क्या हम ये मानें कि राठिया एण्ड सन्स की सफलता की कहानी यहां खत्म नहीं होती !!!! 


तो कहानी अभी बाकी है मेेरे दोस्त ....।

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