Friday, December 27, 2013

सुख का सारथी बना सुखदेव

खरसिया से 20 कि.मी. पूर्व मे जबलपुर गांव है जहां सुकदेव सारथी निवास करते है। लगभग 40 की उम्र के सुखदेव को तीन भाइयों मे थे, और उन्हें पौने तीन एकड़ एकड भूमि विरासत मे मिली । एक फसली और लगभग बंजर भूमि गुजर बसर के लिए अपर्याप्त थी। कृषि मजूदरी और यहां वहां काम करते हुए सुखदेव का जीवन संकटों से घिरा था। 

वर्ष 2011-12 मे जबलपुर मे जलग्रहण कार्यक्रम शुरू हुआ। इसके तहत भूमि एवं जल संरक्षण के कार्य हो रहे थे, मगर स्वचयं की भूमि कम होने के कारण इसका सुखदेव को इसका लाभ नहीं था। वह तो आपने एक रि’तेदार की तरह वह भी मुर्गी का धंधा करना चाहता था। एक दिन जलग्रहण समिति की बैंठक के दौरान पीआइए सदस्य श्री अ’वनी चैहान से उसने अपने मन कर बात रखी। श्री चैहान ने उसे प्रोत्साहित किया । उसे बताया कि परियोजना के तहत जलग्रहण समिति के माध्यम से आसान ऋण दिया जा सकता था।
जलग्रहण समिति जबलपुर ने, उसके नवीन उद्यम के लिए 25000 रू की प्रारंभिक सहायता की। अपने घर के आंगन मे सुखदेव ने मुर्गियों का बाड़ा तैयार किया और पहली बार वह 200 चुजे ला कर मुर्गी पालना शुरू किया। पत्नी एवं पुत्र ने भी सहयोग किया। चार माह के भीतर पहले ऋण को चुकाते हुए सुखदेव ने मामूली मुनाफा हासिल किया। पर इस प्रक्रिया मे उसका आत्मवि’वास बढ़ा, व्यवासायिक संपर्क बने, अनुभव हुआ तथा व्यवसाय मे उपयोग होने वाले कुछ उपकरण एवं सामग्री इकटठा हो गई।
शीघ्र ही सुखदेव पुनः ऋण की मांग के साथ हाजिर था। इस बार जलग्रहण समिति ने स्व सहायता समूहों की सहकारी समिति के सहयोग से पचास हजार रूपये का ऋण दिलाया। सुखदेव ने इस बार बाड़े का आकार बढाकर 1500 चूजे डाले। सूझ बूझ, परीश्रम और आत्मवि’वास के साथ उसने आगामी दो चक्र मे 2,30,000 (दो लाख तीस हजार रूपया ) केी कमाई की। मुर्गी विक्रेता अब उसके घर का पता पूछते हुए आने लगे। 


सालभर के भीतर सुखदेव की किस्मत पलट चुकी है। वह अगले चक्र की तैयारी में है। उसके बाड़े का क्षेत्रफल लम्बाई 40 फीट और चैडाई 20 फीट है। उसने बाड़े के पास एक छोटा तालाब खुदवा रहा है जिसमे मछली पालन किया जाएगा। पीआए श्री चैहान के मुताबिक यह योजना इसलिए है कि मुर्गियों की बीट मछलियों के लिए उच्च गुणवत्ता का भोजन है और इससे वे तीव्रता से वृद्धि करती हैं। इस मुनाफे का एक अं’ा अपनी एकफसली भूमि पर सिचाई व्यवस्था के लिए भी खर्च किया। लगभग 50000 रूपये की लागत से बोर सिचाई हेतु बोर उपलब्ध करवाया। नतीजतन अब उस भूमि पर साल भर फसल लेने की स्थिति है। 


सुखदेव की प्रेरणा से ग्राम मे 4 अन्य परिवार भी मुर्गी पालन शुरू कर चुके हैं तथा सुखदेव से मार्गदर्’ान और बाजार व्यवस्था पा रहे है। ग्राम मे और भी परिवार इच्छुक है। पीआइए जनमित्रम कल्याण समिति की योजना इन्हे एक मुर्गीपालक उत्पादन सहकारी समिति मे परिवर्तित करने की है। अनुसूचित जाति का यह कृषक अपनी आर्थिक सफलता और गांव मे बढ़े हुए महत्व से अभिभूत है और इसका सारा श्रेय गांव मे चल रहे जलग्रहण कार्यक्रम और अपनी जलग्रहण समिति के अध्यक्ष श्री हेतराम राठिया एवं पीआइए सदस्य श्री अ’वनी चैहान को को देता है।

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Contributed by - Shri Santosh Paddey, 
Block mentor and Programme Director  

कौन थे , क्या हो गये, और क्या होंगे अभी..?

शायद एक दशक से अधिक हो गया जब पहली बार नवीन जिंदल की तस्वीर देखी थी. इंडिया टुडे के अन्दर के पृष्ठ पर छपी एक खबर थी. जहाँ भारतीय झंडे के बैक ग्राउंड में एक सुदर्शन युवक मुस्कुराता हुआ खड़ा था. खबर थी की इस लड़के के प्रयासों  से आम भारतीय को अपने देश का झंडा फहराने की आज़ादी मिली है. 
मुस्कुराता हुआ वो लड़का अमरीका से पढ़कर लौटा था. कभी कभी अपने उद्योगपति पिता  की जीप खुद चलाता था. पिता के बाद औद्योगिक विरासत भी उसी अंदाज़ में संभाली. देखते देखते मझोला उद्योग देश के सिरमौर उद्योगों में शुमार हो गया. खबरे और तस्वीरे आती रही , कभी देश के समाचार पत्रों  में तो कभी विदेशी पत्रिकाओ में . अन्दर के पृष्ठों से मुखपृष्ठ की ये यात्रा  हम एक सकारत्मक संवेदना के साथ देखते रहे. 
कभी कभार स्थानीय समाचार पत्रों की हेड- लाइन और कुछ आन्दोलनजीवी  प्राणी हल्ला मचाते थे ! प्रदूषण कर दिया, जमीन ले ली, पानी ले लिया, मुआवजा दो - फिर से दो और ज्यादा दो ! धरने , भूख हड़ताल, चक्काजाम होते रहे. हर सुबह हम पढ़ते रहे. कभी कभार  कुछ लोगो के लिए सहानुभूति हुई, मगर इतनी नहीं की जेहनो दिमाग पे तारी हो. All these are part of game  .  तेज विकास  की कीमत तो देनी ही होगी , दे रहे हैं!
फिर शायद उद्योगों का विरोध एक किस्म का फैशन है. सिंगूर हो या तमनार, कुछ लोगो का self promotion और value addition की schme है . चुके हुए पत्रकार , पार्टी बाहर नेता, तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओ, और विरोध को खाने सोने पहनने  वालो का चर्चा में रहने को इजाद किया एक तरीका है. दशक भर पहले इंडिया टुडे की उस तस्वीर के प्रति सकारात्मक संवेदना ने शायद आँख और कान में पर्दा दल रखा था. 
फिर एक काम धाम से भरे दिन एक फ़ोन आया. मोबाइल की स्क्रीन  पे वो ही आन्दोलंजीवी मित्र का नाम  था. " फिर टाइम बर्बाद" के अंदाज में फ़ोन उठाया . मित्र हड़बड़ी में थे , बोले - रमेश भाई को गोली मार दी. मै अवाक् था. घबराकर पुछा - जिन्दा हैं?? जवाब मिला- अभी तक तो हैं, अस्पताल लेके  गये हैं. दौड़ कर अस्पताल पंहुचा तो जबजस्त भीड़ . ICU के अधखुले दरवाजे से बिस्तर पर पड़े आदमी को देखा. सदा मुस्कुराने वाला जीव अचेत पड़ा था. अन्दर जाने की हिम्मत नहीं हुई. परिवार सदमे में था. सांत्वना देना भी क्रूरता लग रही थी, सो कुछ कहे बिन लौट आया. 
कुछ दिनों बाद जब रमेश जी स्वस्थ होकर , व्हील चेयर  पे सवार हो लौटे. अब तक पुलिस ने जिंदल कम्पनी के सिक्यूरिटी कम्पनी के लोगो को इस मामले में गिरफ्तार कर चुकी थी.  अगवानी और सम्मान प्रकट करने हम भी गए.  कुछ लोग वहां नवीन जिंदल का पुतला ले आये. सारा शहर घुमाकर गाँधी प्रतिमा के सामने फूँक डाला. कार की विन्दस्क्रीन के पीछे से हम ये नज़ारा देखते रहे. इन्ही क्षणों  में , कुछ किलोमीटर की दूरी पर नवीन जिंदल , तरह तरह की चेरटी गतिविधियों से अपने पिता का जन्मदिन मना रहे थे. अगले दिन उनकी भी न्यूज़ आई, पुतले की भी. हमने पुतले की खबर पहले पढ़ी. सकारात्मक संवेदना  पाला  बदल चुकी थी.  ख़ारिज किये आन्दोलन जीवी  अचानक हीरो लगने लगे और भगाए हुए नेता शर्द्धेय..... जल्द ही हमने अपने आपको भी तख्ती लिए उनके साथ सड़क पर पाया.  दोस्त यार और परिवार चोंक गए और शुभचिन्तक भयभीत.  

नजर में  ये परिवर्तन और मन में आक्रोश लिए मैं अकेला नहीं हूँ. इस डेढ़ दशक में छोटे जिंदल बाबु  ने हर बर्बर घटना के बाद कितनो की सकारात्मक  संवेदना खोयी है. सड़क पे तख्ती लेकर निकलने वाले अभी तक कम है मगर पुतला जलते देख मुस्कान छिपाने वाले दिनोदिन घट रहे हैं. यत्र तत्र लगे आत्मश्लाघा के होर्डिंग्स कहते है की अब साम्राज्य केवल इस प्रदेश या देश तक सिमित नहीं रहा. जो कम्पनी की नौकरी में हैं , वो भी जानते है की नफरत और घृणा का ये आलम भी ग्लोबल होता जा रहा है. 

सकारात्मक  संवेदना वाले बचे लोग आज भी वही  भी तर्क देते हैं जो पहले लिखे जा चुके है. पर यदि विकास की कीमत प्रदुषण सूंघकर दी जानी  है, तो इसे स्वीकार या  मना करने की वक्तिगत स्वतंत्रता सबको है. वहां  तक बहुत लोग तैयार थे. मगर नागरिक अधिकारों का हनन और कानून के राज के खात्में की कीमत पर ये विकास बहुत महंगा है i मैं तो नहीं खरीदूंगा . 

लोग जानते हैं की रायगढ़ से अंगुल तक रमेश गोलीकांड जैसे मामलो में , जिसमे कम्पनी  के प्रत्यक्ष या परोक्ष  भृतयोद्धा पोलिसे द्वारा आरोपित हैं ,  नवीन जिंदल की सीढ़ी संलिप्तता प्रमाणित होना दूर की कौड़ी है! मगर ये कानूनी पहलु है.  जनमानस को ये गले उतरना कठिन है की कठोर केंद्रीकृत कम्पनी के निचले स्तर  के सेवक कंपनी की खिलाफत करने वालो को सबक सिखाने के लिए कांट्रेक्ट किलर से संपर्क स्वेच्छा  कर आयेगा. चलो यदि यही सच है तो फिर रायगढ़ से अंगुल तक आपराधिक गतिविधियों में लिप्त  ऐसे अवज्ञाकारी, रिस्क प्रोन  सेवको को कानून के सुपुर्द करने में क्या समस्या है. साफ़ है की इन सेवको की ऐसी समस्याओ ( या समस्या दाताओ) को किसी भी कानूनी गैर कानूनी तरीके से निपटने की छूट है, और ये स्वीकृति देना , छोटे मोटे लोगो की बस की बात नहीं.  

किसी भी स्थिति में , ऐसा व्यक्ति जो संसद में विराजमान हो, देश के कानून का निर्माण करता हो ; उसके निजी साम्राज्य में मानवीय मूल्यों और कानून के प्रति हिकारत का ये बाव बड़े खतरनाक  भविष्य का संकेत हैं. मैं उस क्षण  को डरता हूँ, जब आज से दस बीस या तीस साल बाद ये युवा संसद किस प्रमुख संवेधानिक पद पर बैठा होगा !  तब ................???? जवाब रमेश अग्रवाल की जांघ पर खुदा  है 

फिलहाल, जहा गढ़हो के लिए मेयर और प्याज के लिए सरकार दोषी होती है. वहा मूढमति और डंडा-बन्दूकधारियों को पब्लिक मैनेजमेंट  की छूट देकर शीर्ष नेतृत्व कोर्ट से भले बच जाये,  जनता की अदालत  में उसके पुतलो की शामत  तो तय है. भारतीय तिरंगे की पृष्ठभूमि  में मुस्कुराते उस सुदर्शन युवक की ऐसी दर्दनाक यात्रा का साक्षी होना दुःख की बात है. 
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पुनश्चा:  लियोनार्दो डा विन्ची को एक बार किसी चर्च में  देवदूत की तस्वीर बनाने का काम मिला. एक युवा पादरी को माडल बनाकर उसने चित्र बनाया. बीस साल बाद उसे, पुराने चित्र के पास शैतान का चित्र बनाने को कहा गया. कारागार  में जाकर उसने सबसे भीषण हत्यारे को लिया. उसे मॉडल बनाकर चित्र पूरा किया. चित्र पूरा होने के दिन उस मॉडल ने आत्महत्या कर ली.

सुसाइड नोट से पता चला की ये वो ही आदमी था जिसने सालो पहले  देवदूत की तस्वीर के लिए मॉडल चुना गया था.
वह शर्मिंदा था....

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Contributed By : Mr Manish Singh
ritumanishsingh@gmail.com
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