शाम को जब घर पहुंचा तो पत्नी जी एक स्टेटमेण्ट का निरीक्षण कर रही थी। शेयरो मे इन्वेस्टमेण्ट की डिटेल थी। खबर कुछ अच्छी नहीं थी। नामी गिरामी कंपनियों मे मेहनत की गाढ़ी कमाई आधी हो गई है। बुरा हो इस मंदी का ... । पिछले एक साल से सेन्सेक्स उपर तो हो रहा है मगर हमारे शेयर औधे मुंह पड़े है।
मूड़ खराब हो, बीवी नाराज हो उस दिन फील्ड जरूर चले जाना चाहिए। पत्नी अभी भी उदास थी। सो सांत्वना दी - कुछ समय इंतजार करो, सब ठीक हो जाएगा। फिर निकल पड़े।
आज खरसिया जाना है। यहां आसपास के 20 गांवों मे हमारी संस्था जनमित्रम, एक जलग्रहण परियोजना संचालित कर रही है। मिट्टी जल संरक्षण के कुछ काम देखने हैं। ऋण लेकर बढि़या काम कर रहे कुछ महिला स्वसहायता समूहों से भी मिलना है।
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दिन के दूसरे हाफ मे नवरंगपुर पहुंचे। माण्ड के पास पहाड़ी टीले पर बसा ये गांव पानी की कमी से बुरी तरह त्रस्त है। बोर फेल हैं, कुंए सूख जाते हैं, महिलाऐं 2-3 किलोमीटर दूर से पानी लाती हैं। नतीजा - खेती एकफसली है, पशुपालन सीमित है,पूंजी नही है तो कुटीर व्यवसाय भी कम हैं। पांच सौ की आबादी का यह गांव गरीबी और जकड़न का उदाहरण है।
पुरूषों मे शराब की प्रचलन खूब है, मगर गांव की महिलाऐं जागरूक है। कुछ ऐसी धारा है कि कुनबे मे परिवार अलग हो जाते है मगर महिलाऐ बड़ा मिलजुलकर रहती हैं। गांव मे हमारे बनाऐ छह स्वसहायता समूह है। गांव की अधिकांश सास बहुऐं इन समूहों मे जुड़ी है। इनकी एक फेडरेशन है जो रवि कोआपरेटिव (जनमित्रम द्वारा प्रणीत सहकारी समिति ) से संबद्ध है। जहां बैंक इन्हें संपत्ति और कागजों के अभाव मे ऋण नहीं देता, वहां गांव की फेडरेशन के निर्णय पर रवि कोआपरेटिव, एक कागज के आवेदन पर ऋण दे देता है।
ग्राम मे जलग्रहण समिति भी बनी है, जिसमे भी पुरूषों की तुलना मे महिलाओं का बाहुल्य है। यह समिति, जलग्रहण परियोजना के पहलुओं पर निर्णय करती है तथा मिट्टी -जल संरक्षण के कार्यों क्रियान्वयन करती है। प्रथम, इस कमेटी से कार्यों और योजनाओं पर ही चर्चा हुई। इसके बाद हम पहुचे गणेशि बाई के घर।
गणेशि बाई का मिट्टी का घर, जिसके आगन मे हम बैठे, गाय का कोठार और बकरियों का शेड बना था। इसके आसपास के घरो की महिलाओं ने चंद्रहासिनी समूह बना रखा है। अप्रेल 2013 मे गठित इस समूह मे अध्यक्ष रामबाई हैं तो सचिव भोजकुमारी। समूह की महिलाऐं 50 रू साप्ताहिक बचत करती है, और इस प्रकार 10 महिलाऐ मासिक रूप से 2000 रू बचा कर कोआपरेटिव मे आवर्ती खाता खोलकर जमा किया है। सभी परिवार या तो भूमिहीन हैं या 2-3 एकड़ असिचित टिकरा के पट्टेदार।
भोजकुमारी ने बात करनी शुरू की। समूह ने 8 माह पहले 45000 का ऋण लिया था। इससे बकरियां खरीदी गईं।देसी बकरियां यहां अच्छा व्यवसाय है। साल भर मे दो बार बच्चे जनने वाली देसी बकरियां, 1 साल की उम्र तक तीन साढे तीन हजार मूल्य की हो जाती है। इन्हे साधारण पत्ते, घासफूस खिलाकर बढाया जा सकता है। इतने मे गणे’ाी चारे की एक डाल को लिए आगे आती दिखी, और पीछे पीछे बकरियों का रेला। समूह के पास अभी लगभग 25 बकरियां हैं। इन्हे उचित समय पर बेचा जाएगा। लगभग आने वाले तीन चार माह मे 1 लाख रूपये कमाने की आशा है। मान लीजिए साल भर मे दोगुने से अधिक मुनाफा ...
समूह के रजिस्टर आदि चेक किए। सबकुछ दुरूस्त था। बकरियों के टीकाकरण आदि को लेकर कुछ बातचीत हुई। फिर हम वापसी के लिए चल पड़े।
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गांव से निकल कर मुख्यमार्ग पर आते हुए दिमाग मे कौधा - पत्नी जी को कहा जाए कि शेयर बेच कर कुछ बकरियां खरीद लो। कम से कम यहाँ तुम्हारा पैसा डूबेगा नहीं।
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Contributed By : Manish Singh
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