कहे परिवेश , मै कन्या
कहे यह देश , मै धन्या
कलेजा कलेश से कम्पित
ये मै हूँ , देश की कन्या
अश्रुजल से हुई खारी
कहा जाता मुझे नारी
परा तक पीर की पर्वत
कहा जाता मुझे औरत
यहाँ हूं देश की कन्या
वहां हूं देश की कन्या
बहन, पत्नी, जननी, जन्या
इसी परिवेश की कन्या
मै सोनल हूं, मै सलमा हूं,
सुरय्या हूं , मै सरला हूँ
मै जमुना हूँ, मै जौली हूं,
मै रजिया हूँ, मै मौली हूँ
मै चंदो हूँ, मै लाजो हूँ
सुनिला हूँ, प्रकाशो हूँ
मै कुंती हूँ, मै बानो हूँ
मै हुस्ना हूँ, मै ज्ञानो हूँ
मै राधा , रामप्यारी हूँ
वतन की आम नारी हूँ
दुखों की कैद में लेकिन
रहूंगी और कितने दिन
न हूँ मै बंदिनी सुन लो
न हूँ अवलंबिनी सुन लो
सृजन की शक्ति है मुझमे
अतुल अनुरक्ति है मुझमे
मै बौद्धिक हूँ , विलक्षण हूँ
त्वरा तत्पर, प्रति क्षण हूँ
मै प्रतिभा हूँ, मै दक्षता हूँ
मै जननी हूँ, मै ममता हूँ
सहारे की हथेली हूँ
कहा तुमने पहेली हूँ ....?
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अशोक चक्रधर
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