पहले उनका नाम था संतोषी, कौशल्या, लक्ष्मीन, जमुना, दुलारी और लेखनी । गुरदा की ये महिलाऐं कृषि मजदूर थी। मांड नदी के किनारें बसे गुरदा मे धान, सब्जी और मूंगफली की खेती साल भर चलती हैं। जिनके पास भूमि है, वे समृद्ध है। जिनके पास नहीं है, वो इन महिलाओं की तरह खेतिहर मजदूरी या पशुपालन करते है। गरीब परिवारों के पास अगर थोड़ी बहुत जमीन थी भी, तो शादी ब्याह बीमारी के चक्करों मे कर्ज की भेट चढ़ गई।
फिर एक दिन मे सभी ने अपनी अलग-अलग पहचान मिटाने का फैसला किया। मिलकर वो एक हो गईं। नाम रखा चन्द्रहासिनी स्व सहायता समूह। चन्द्रहासिनी नाम है उस देवी का जो महानदी के किनारे चन्द्रपुर मे एक पहाड़ी पर आसीन है। गुरदा की इन देवियों ने दूर बैंठी मां चंद्रहासिनी की कृपा की आकांक्षा तो की, मगर कृपा आने तक इंतजार नही किया। लक्ष्मीन, जो थोड़ी पढी लिखी होने के कारण समूह की सचिव बनी थी, उसके घर मे हर कोई रविवार 2 बजे जमा होता। जनमित्रम के स्थानीय कार्यकर्ता भारत भी वहीं आ जाते। कई तरह की बातें होती, भजन गायन से लेकर कहानी किस्से, दुख तकलीफ और छोटी छोटी खुशियां बाटी जाती। बैठक के अंत मे सभी पचास रूपये जमा करती, जिसे सचिव लक्ष्मीन रजिस्टर और खातों मे लिखती। माह की अंतिम बैठक के बाद जमा हुए रूपये भारत ले जाते और कोआपरेटिव फेडरेशन मे इस समूह के खाते मे जमा कर देते।
भारत के सीनीयर ने जीवन भगत भी एक दिन समूह की बैठक मे आए। समूह सदस्यों की जरूरतों, और जो थोड़े बहुत संसाधन थे उनका आकलन कर कर एक क्रेडिट प्लान तैयार किया। तय हुआ पहला ऋण 45000 का होगा, लेखनी 16000 लेगी ताकि अपनी गिरवी रखी जमीन छुड़ा सके। लक्ष्मीन का घर गांव के चैक पर था। वो वहीं एक दुकान खोलना चाहती थी। वह 16000 लेगी । बचे पैसे से समूह एक जमीन दो साल के लिए लीज पर लेगा, जहां मिल जुलकर खेती की जाएगी।
पैसे दो दिन बाद मिल गए। लक्ष्मीन की दुकान खुल गई , अब वह दुकान मे बैठती है। दिन के डेढ दो सौ कमाती। मजदूरी करती है मगर केवल समूह की जमीन पर। प्लानिंग कमीशन की परिभाषा में अब वह बीपीएल से काफी ऊपर आ चुकी है।
लेखनी की जमीन वापस आई, तो परिवार ने उस पर खेती शुरू कर दी जिससे 30 हजार का धान निकला है। समूह की जमीन पर भी धान लगा, लगभग 22000 का घान वहां भी आ गया जिसपर समूह की हकदारी है। अभी साल भर के लिए जमीन की लीज बाकी है। अगले साल जो आएगा, पूरा का पूरा मुनाफा होगा।
दो परिवार आबाद हुए और सामूहिक आय भी बढ़ी। धान मडियों मे दे दिया गया है, चेक मिलते ही कर्जा वापस हो जाएगा, तय अवधि से तीन माह पहले ही .... ! बाकी के परिवार भी योजना बनाकर तैयार बैठे है। ऋण के अगले चक्र, या कहे की कि मां चन्द्रहासिनी की कृपा पाने का अगला नंबर उनका है।
गुरदा मे तीन ऐसे स्व सहायता समूह और है। गांव की चालीस महिलाऐं इस धारा मे जुड़ चुकी हैं, और भी जुड़ती जा रहीं है। कुछ दुर्गा मैया के नाम पर तो कोई लक्ष्मी माता के नाम पर कृपा की आंकांक्षी हैं।
गुरदा मे तीन ऐसे स्व सहायता समूह और है। गांव की चालीस महिलाऐं इस धारा मे जुड़ चुकी हैं, और भी जुड़ती जा रहीं है। कुछ दुर्गा मैया के नाम पर तो कोई लक्ष्मी माता के नाम पर कृपा की आंकांक्षी हैं।
एक बड़े "गाडमैन" टेलिविजन पर समागम करते है और भक्त भक्तिनियों को बताते है कि काला पर्स रखने, या नीली चादर पर बैठने से कृपा आएगी। उन्हे संतोषी, कौशल्या, लक्ष्मीन, जमुना, दुलारी और लेखनी से मिलने की जरूरत है, जो बताऐंगी की कृपा दरअसल कहां रूकी थी। लक्ष्मीन की बेटी दिव्या इसे साफ लफ्जो मे कहती है - एकता नहीं थी ना, तभी कृपा रूकी थी।
चलिए भई, अब कृपा आ रही है।
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Contributed by Manish Singh